Maine Khud Ko Paya
सुबह सुबह की इस धूप को जब पत्तों से छनते हुए ज़मीन पर गिरते देखा तो मैंने खुद को पाया,
ओस से गीली मिटटी की भीनी खुशबू को जब मैंने महसूस किया और लम्बी सांस भरी तो मैंने खुद को पाया,
पक्षियों की चहचहाट और पत्तों की चरचराहट जब मेरे कानों में पड़ी तो मैंने खुद को पाया।
इस शान्ति में मन की अशांति को सुन पा रही हूँ मैं,
ऐसा लग रहा है जैसे कहीं खो गयी थी और अब अपने आपसे मिल पा रही हूँ मैं
भागती दौड़ती इस ज़िन्दगी के इन थमे हुए से पलों में जैसे मैंने खुद को पाया।
इसी खुद को चाहा है मैंने, जो कहीं छुप जाता है इस ज़िन्दगी की चहल पहल में...
आज ढूंढे बिना ही जब मैं मदमस्त हो पल बटोरने लगी, तो मैंने खुद तो खुद को पाया।
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